अरब सागर से उठा चक्रवाती तूफान निसर्ग मुंबई पहुंच चुका है. इसके चलते भारी बारिश हो रही है और 100 किलोमीटर प्रति घंटे से भी ज्यादा की रफ्तार से हवाएं चल रही हैं. दो हफ्ते से भी कम समय के भीतर भारत में आया यह दूसरा चक्रवाती तूफान है. मुंबई में तो एक सदी से भी ज्यादा समय बाद कोई चक्रवाती तूफान आया है.
इससे कुछ ही दिन पहले अंपन तूफान ने पश्चिम बंगाल और ओडिशा में काफी तबाही मचाई थी. इसने 70 से ज्यादा लोगों की जान ले ली थी. बंगाल की खाड़ी से शुरू हुआ यह चक्रवाती तूफान इस इलाके में आया अपनी तरह का दूसरा सबसे बड़ा तूफान था. इन्हें सुपर साइक्लोन कहा जाता है. इनमें कम से कम 180 से 200 किलोमीटर/घंटे की रफ्तार से हवाएं चलती हैं. इससे पहले साल 1999 में आाया तूफान ‘1999 उड़ीसा साइक्लोन’ पहला ज्ञात सुपर साइक्लोन था जिसने भारत, बांग्लादेश, म्यामार और थाईलैंड में तबाही मचाई थी.
बंगाल की खाड़ी में बीते साल इन्हीं दिनों ‘फानी’ ने अत्यधिक तीव्रता वाले तूफान का रूप ले लिया था. इससे पहले अक्टूबर-2018 में आए चक्रवाती तूफान ‘तितली’ ने ओडिशा और आंध्र प्रदेश में तबाही मचाई थी. दोनों ही तूफानों के चलते हुई भारी बारिश और भूस्खलन ने दोनों राज्यों के एक बड़े हिस्से में सामान्य जनजीवन पटरी से उतार दिया था. ओडिशा के तटीय इलाकों से लाखों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया था. इससे एक महीने पहले भी ओडिशा को चक्रवाती तूफान ‘डे’ की मार का सामना करना पड़ा था. इससे कुछ साल पहले, 2013 में आए ‘फैलिन’ तूफान ने ओडिशा और आंध्र प्रदेश में भारी तबाही मचाई थी.
यह जानना भी दिलचस्प है कि तबाही मचाने के लिए कुख्यात इन तूफानों का नाम कैसे रखा जाता है. बीबीसी के मुताबिक 1953 से अमेरिका के मायामी स्थित नेशनल हरीकेन सेंटर और वर्ल्ड मेटीरियोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन (डब्लूएमओ) की अगुवाई वाला एक पैनल तूफ़ानों और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नाम रखता था. डब्लूएमओ संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी है. हालांकि पहले उत्तरी हिंद महासागर में उठने वाले चक्रवातों का कोई नाम नहीं रखा जाता था. जानकारों के मुताबिक इसकी वजह यह थी कि सांस्कृतिक विविधता वाले इस क्षेत्र में ऐसा करते हुए बेहद सावधानी की जरूरत थी ताकि लोगों की भावनाएं आहत होने से कोई विवाद खड़ा न हो जाए.
2004 में डब्लूएमओ की अगुवाई वाले अंतर्राष्ट्रीय पैनल को भंग कर दिया गया. इसके बाद संबंधित देशों से अपने-अपने क्षेत्रों में आने वाले चक्रवातों का नाम ख़ुद रखने के लिए कहा गया. कुछ साल तक ऐसा किये जाने के बाद इसी साल हिंद महासागर क्षेत्र के आठ देशों ने भारत की पहल पर चक्रवाती तूफानों को नाम देने की एक औपचारिक व्यवस्था शुरू की है. इन देशों में भारत के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, मालदीव, श्रीलंका, ओमान और थाईलैंड शामिल हैं. इन सभी देशों ने मिलकर तूफानों के लिए 64 नामों की एक सूची बनाई है. इनमें हर देश की तरफ से आठ नाम दिये गये हैं. इस नई व्यवस्था में चक्रवात विशेषज्ञों के एक पैनल को हर साल मिलना है और जरूरत पड़ने पर सूची में और नाम जोड़े जाने हैं.
सदस्य देशों के लोग भी तूफानों के लिए नाम सुझा सकते हैं. जैसे भारत सरकार इस शर्त पर इन नामों के लिए लोगों से सलाह मांगती है कि वे छोटे, समझ में आने लायक और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील और भड़काऊ न हों. ‘निसर्ग’ नाम बांग्लादेश ने सुझाया है जिसका अर्थ है प्रकृति. ‘अंपन’ का नामकरण थाईलैंड ने किया था जिसका शाब्दिक अर्थ है आकाश. वहीं बीते साल आए तूफान ‘फानी’ को यह नाम बांग्लादेश ने दिया था. वैसे बांग्ला में इसका उच्चारण फोनी होता है और इसका मतलब है सांप.
इतनी सावधानी के बावजूद विवाद भी हो ही जाते हैं. जैसे साल 2013 में ‘महासेन’ तूफान को लेकर आपत्ति जताई गई थी. श्रीलंका द्वारा रखे गए इस नाम पर इसी देश के कुछ वर्गों और अधिकारियों को ऐतराज था. उनके मुताबिक राजा महासेन श्रीलंका में शांति और समृद्धि लाए थे, इसलिए आपदा का नाम उनके नाम पर रखना गलत है. इसके बाद इस तूफान का नाम बदलकर ‘वियारु’ कर दिया गया.
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